7+ Best Moral Stories in Hindi for Class 8 | कक्षा 8 के लिए हिंदी नैतिक कहानियाँ


Moral Stories in Hindi for class 8: Hello friends, how are you? Today I am sharing the top 7 moral stories in Hindi for class 8. These short stories in Hindi are very valuable for class 8 and give very good morals.

आज के इस आर्टिकल मे, मै आप के साथ top 7 short stories in hindi for class 8 with moral share कर रहा हूँ। ये हिंदी नैतिक कहानियाँ बच्चों के लिए बहुत ही उपयोगी होगी। ये सभी कहानियों के अंत मे नैतिक शिक्षा दी गयी हैं। जो बच्चों को लोगों और दुनिया को समझने मे बहुत मदद करेगी।


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आईये इन top 7 moral stories in Hindi for class 8 पढ़ते हैं।

Top 7 Best Moral Short Stories in Hindi for Class 8


Moral Stories in Hindi for Class 8

1. बुद्धि का बल - Moral Stories in Hindi for Class 8


एक बार विश्व के महानतम दार्शनिकों में से एक सुकरात अपने शिष्यों के साथ बैठे कुछ चर्चा कर रहे थे। तभी वहां अजीबो-गरीब वस्त्र पहने एक ज्योतिषी आ पहुंचा।

वह सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए बोला, "मैं ज्ञानी हूँ,मैं किसी का चेहरा देखकर उसका चरित्र बता सकता हूँ। बताओ तुममें से कौन मेरी इस विद्या को परखना चाहेगा?”

शिष्य सुकरात की तरफ देखने लगे।

सुकरात ने उस ज्योतिषी से अपने बारे में बताने के लिए कहा।

अब वह ज्योतिषी उन्हें ध्यान से देखने लगा।

सुकरात बहुत बड़े ज्ञानी तो थे लेकिन देखने में बड़े सामान्य थे, बल्कि उन्हें कुरूप कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी।

ज्योतिषी उन्हें कुछ देर निहारने के बाद बोला, "तुम्हारे चेहरे की बनावट बताती है कि तुम सत्ता के विरोधी हो, तुम्हारे अंदर द्रोह करने की भावना प्रबल है। तुम्हारी आँखों के बीच पड़ी सिकुड़न तुम्हारे अत्यंत क्रोधी होने का प्रमाण देती है।”

ज्योतिषी ने अभी इतना ही कहा था कि वहां बैठे शिष्य अपने गुरु के बारे में ये बातें सुनकर गुस्से में आ गए और उस ज्योतिषी को तुरंत वहां से जाने के लिए कहा।

पर सुकरात ने उन्हें शांत करते हुए ज्योतिषी को अपनी बात पूर्ण करने के लिए कहा।

ज्योतिषी बोला, "तुम्हारा बेडौल सिर और माथे से पता चलता है कि तुम एक लालची ज्योतिषी हो, और तुम्हारी ठुड्डी की बनावट तुम्हारे सनकी होने के तरफ इशारा करती है।”

इतना सुनकर शिष्य और भी क्रोधित हो गए पर इसके उलट सुकरात प्रसन्न हो गए और ज्योतिषी को इनाम देकर विदा किया। शिष्य सुकरात के इस व्यवहार से आश्चर्य में पड़ गए और उनसे पूछा, "गुरूजी, आपने उस ज्योतिषी को इनाम क्यों दिया, जबकि उसने जो कुछ भी कहाँ वो सब गलत है?”

"नहीं पुत्रों, ज्योतिषी ने जो कुछ भी कहा वो सब सच है, उसके बताये सारे दोष मुझमें हैं, मुझे लालच है, क्रोध है, और उसने जो कुछ भी कहा वो सब है, पर वह एक बहुत ज़रूरी बात बताना भूल गया। उसने सिर्फ बाहरी चीजें देखीं पर मेरे अंदर के विवेक को नही आंक पाया, जिसके बल पर मैं इन सारी बुराइयों को अपने वष में किये रहता हूँ। बस वह यहीं चूक गया, वह मेरे बुद्धि के बल को नहीं समझ पाया!”, सुकरात ने अपनी बात पूर्ण की।

Moral of this Hindi Stories for Class 8:

मित्रों, यह प्रेरक प्रसंग बताता है कि बड़े से बड़े इंसान में भी कमियां हो सकती हैं, पर यदि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करें तो सुकरात की तरह ही उन कमियों से पार पा सकते हैं।

2. चावल का एक दाना - Moral Stories in Hindi for Class 8


शोभित एक मेधावी छात्र था। उसने हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में पूरे जिले में टॉप किया था। पर इस सफलता के बावजूद उसके माता-पिता उसे खुश नहीं थे। कारण था पढाई को लेकर उसका घमंड ओर अपने बड़ों से तमीज से बात न करना। वह अक्सर ही लोगों से ऊंची आवाज़ मे बात किया करता और अकारण ही उनका मजाक उड़ा देता। खैर दिन बीतते गए और देखते-देखते शोभित स्नातक भी हो गया।

स्नातक होने के बाद सोभित नौकरी की खोज में निकला। प्रतियोगी परीक्षा पास करने के बावजूद उसका इंटरव्यू में चयन नहीं हो पाता था। शोभित को लगा था कि अच्छे अंक के दम पर उसे आसानी से नौकरी मिल जायेगी पर ऐसा हो न सका। 

काफी प्रयास के बाद भी वो सफल ना हो सका। हर बार उसका घमंड, बात करने का तरीका इंटरव्यू लेने वाले को अखर जाता और वो उसे ना लेते। निरंतर मिल रही असफलता से शोभित हताश हो चुका था, पर अभी भी उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे अपना व्यवहार बदलने की आवश्यता है।

एक दिन रास्ते में शोभित की मुलाकात अपने स्कूल के प्रिय अध्यापक से हो गयी। वह उन्हें बहुत मानता था ओर अध्यापक भी उससे बहुत स्नेह करते थे। सोभित ने अध्यापक को सारी बात बताई। चूँकि अध्यापक सोभित के वयवहार से परिचित थे, तो उन्होने कहा की कल तुम मेरे घर आना तब मैं तुम्हे इसका उपाय बताऊंगा। 

शोभित अगले दिन मास्टर साहब के घर गया। मास्टर साहब घर पर चावल पका रहे थे। दोनों आपस में बात ही कर रहे थे की मास्टर साहब ने शोभित से कहा जाके देख के आओ की चावल पके की नहीं। शोभित अन्दर गया, उसने अन्दर से ही कहा की सर चावल पक गए हैं, मैं गैस बंद कर देता हूँ। मास्टर साहब ने भी ऐसा ही करने को कहा। 

अब सोभित और मास्टर साहब आमने सामने बैठे थे। मास्टर साहब शोभित की तरफ मुस्कुराते हर बोले – शोभित तुमने कैसे पता लगया की चावल पक गए हैं?

शोभित बोला ये तो बहुत आसान था। मैंने चावल का एक दाना उठाया और उसे चेक किया कि वो पका है कि नहीं, वो पक चुका था तो मतलब चावल पक चुके हैं। 

मास्टर जी गंभीर होते हुए बोले यही तुम्हारे असफल होने का कारण है। 

शोभित उत्सुकता से मास्टर जी के तरफ देखने लगा। 

मास्टर साहब समझाते हुए बोले की एक चावल के दाने ने पूरे चावल का हाल बयां कर दिया। सिर्फ एक चावल का दाना काफी है ये बताने को की अन्य चावल पके या नहीं। हो सकता है कुछ चावल न पके हों पर तुम उन्हें नहीं खोज सकते वो तो सिर्फ खाते वक्त ही अपना स्वाभाव बताएँगे। 

इसी प्रकार मनुष्य कई गुणों से बना होता है, पढाई-लिखाई में अच्छा होना उन्ही गुणोँ में से एक है, पर इसके आलावा, अच्छा व्यवहार, बड़ों के प्रति सम्मान, छोटों की प्रति प्रेम, सकारात्मक दृष्टिकोण, ये भी मनुष्य के आवश्यक गुण हैं, और सिर्फ पढाई-लिखाई में अच्छा होना से कहीं ज्यादा ज़रुरी हैं।

तुमने अपना एक गुण तो पका लिया पर बाकियो की तऱफ ध्यान ही नहीं दिया। इसीलिए जब कोई इंटरव्यूवर तुम्हारा इंटरव्यू लेता है तो तुम उसे कहीं से पके और कहीं से कच्चे लगते हो, और अधपके चावलों की तरह ही कोई इस तरह के कैंडिडेट्स भी पसंद नही करता।

शोभित को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। वो अब मास्टर जी के यहाँ से नयी एनर्जी ले के जा रहा था।

Hindi Story Moral:

दोस्तों हमारे जीवन में भी कोई न कोई बुराई होती है, जो हो सकता है हमें खुद नज़र न आती हो पर सामने वाला बुराई तुरंत भाप लेता है। अतः हमें निरंतर यह प्रयास करना चाहिए कि हमारे गुणों से बना चावल का एक-एक दाना अच्छी तरह से पका हो, ताकि अगर कोई हमें कहीं से चखे तो उसे हमारे अन्दर पका हुआ दाना ही मिले।

दोस्तों अभी तक आप Top 7 Hindi Moral Stories for class 8 की 2 कहानियाँ पढ़ चुके हैं। और उम्मीद करते हैं की आगे की नैतिक कहानियाँ भी जरूर पढ़ेंगे। आईये पढ़ते हैं 3rd Moral Stories in Hindi for class 8.


3. मछुआरों की समस्या - Moral Stories in Hindi for Class 8


जापान में हमेशा से ही मछलियाँ खाने का एक ज़रुरी हिस्सा रही हैं। और ये जितनी ताज़ी होतीं हैँ लोग उसे उतना ही पसंद करते हैं। लेकिन जापान के तटों के आस-पास इतनी मछलियाँ नहीं होतीं की उनसे लोगोँ की डिमांड पूरी की जा सके। नतीजतन मछुआरों को दूर समुंद्र में जाकर मछलियाँ पकड़नी पड़ती हैं।

जब इस तरह से मछलियाँ पकड़ने की शुरुआत हुई तो मछुआरों के सामने एक गंभीर समस्या सामने आई। वे जितनी दूर मछली पक़डने जाते उन्हें लौटने मे उतना ही अधिक समय लगता और मछलियाँ बाजार तक पहुँचते-पहुँचते बासी हो जातीँ, और फिर कोई उन्हें खरीदना नहीं चाहता।

इस समस्या से निपटने के लिए मछुआरों ने अपनी बोट्स पर फ्रीज़र लगवा लिये। वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें फ्रीजर में डाल देते। इस तरह से वे और भी देर तक मछलियाँ पकड़ सकते थे और उसे बाजार तक पहुंचा सकते थे। पर इसमें भी एक समस्या आ गयी। जापानी फ्रोजेन फ़िश और फ्रेश फिश में आसनी से अंतर कर लेते और फ्रोजेन मछलियों को खरीदने से कतराते, उन्हें तो किसी भी कीमत पर ताज़ी मछलियाँ ही चाहिए होतीं।

एक बार फिर मछुआरों ने इस समस्या से निपटने की सोची और इस बार एक शानदार तरीका निकाला, उन्होंने अपनी बड़ी – बड़ी जहाजों पर फ़िश टैंक्स बनवा लिए ओर अब वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें पानी से भरे टैंकों मे डाल देते। टैंक में डालने के बाद कुछ देर तो मछलियाँ इधर उधर भागती पर जगह कम होने के कारण वे जल्द ही एक जगह स्थिर हो जातीं।

और जब ये मछलियाँ बाजार पहुँचती तो भले ही वे सांस ले रही होतीं लकिन उनमेँ वो स्वाद नहीं होती जो आज़ाद घूम रही ताज़ी मछलियों मे होती है, और जापानी चखकर इन मछलियों में भी अंतर कर लेते। 

तो इतना कुछ करने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई थी।

अब मछुवारे क्या करते? वे कौन सा उपाय लगाते कि ताज़ी मछलियाँ लोगोँ तक पहुँच पाती?

नहीं, उन्होंने कुछ नया नहीं किया, वें अभी भी मछलियाँ टैंक्स में ही रखते, पर इस बार वो हर एक टैंक मे एक छोटी सी शार्क मछली भी ङाल देते। शार्क कुछ मछलियों को जरूर खा जाती पर ज्यादातर मछलियाँ बिलकुल ताज़ी पहुंचती।

ऐसा क्यों होता?

क्योंकि शार्क बाकी मछलियों की लिए एक चैलेंज की तरह थी। उसकी मौज़ूदगी बाक़ी मछलियों को हमेशा चौकन्ना रखती ओर अपनी जान बचाने के लिए वे हमेशा अलर्ट रहती। इसीलिए कई दिनों तक टैंक में रहने के बावज़ूद उनमे स्फूर्ति ओर ताजापन बना रहता।

Moral of This Story:

Friends, आज बहुत से लोगों की ज़िन्दगी टैंक मे पड़ी उन मछलियों की तरह हो गयी है जिन्हे जगाने की लिए कोई shark मौज़ूद नहीं है। और अगर unfortunately आपके साथ भी ऐसा ही है तो आपको भी आपने life में नये challenges accept करने होंगे। आप जिस रूटीन के आदि हों चुकें हैँ ऊससे कुछ अलग़ करना होगा, आपको अपना दायरा बढ़ाना होगा और एक बार फिर ज़िन्दगी में रोमांच और नयापन लाना होगा। नहीं तो, बासी मछलियों की तरह आपका भी मोल कम हों जायेगा और लोग आपसे मिलने-जुलने की बजाय बचते नजर आएंगे।

और दूसरी तरफ अगर आपकी लाइफ में चैलेंजेज हैँ, बाधाएं हैँ तो उन्हें कोसते मत रहिये, कहीं ना कहीं ये आपको fresh and lively बनाये रखती हैँ, इन्हेँ accept करिये, इन्हे overcome करिये और अपने अंदर ताजगी बनाये रखिये।


4. जिराफ़ - Top Moral Stories in Hindi for Class 8


क्लास 6th के बच्चे बड़े उत्साहित थे। इस बार उन्हें पिकनिक के पास के वाइल्डलाइफ नेशनल पार्क ले जाया जा रहा था। 

तय दिन सभी बच्चे ढेर सारे खाने-पीने के सामान और खेलने-कूदने की चीजें लेकर तैयार थे। बस सुबह चार बजे निकली और 2-3 घंटों में नेशनल पार्क पहुँच गयी।

वहां उन्हें एक बड़ी सी कैंटर में बैठा दिया गया और एक गाइड उन्हें जंगल के भीतर ले जाने लगा। मास्टर जी भी बच्चों के साथ थे और बीच-बीच में उन्हें जंगल और वन्य जीवों के बारे में बता रहे थे। बच्चों को बहुत मजा आ रहा था। वे ढेर सारे हिरनों, बंदरों और जंगली पक्षियों को देखकर रोमांचित हो रहे थे।

वे धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे कि तभी गाइड ने सभी को शांत होने का इशारा करते हुए कहा, "शशशश। आप लोग बिलकुल चुप हो जाइए। और उस तरफ देखिये। यह एक दुर्लभ दृश्य है, एक मादा जिराफ़ अपने बच्चे को जन्म दे रही है।”

फिर क्या था। गाड़ी वहीँ रोक दी गयी, और सभी बड़ी उत्सुकता से वह दृश्य देखने लगे।

मादा जिराफ़ बहुत लम्बी थी और जन्म लेते हुए बच्चा करीब दस फुट की ऊंचाई से जमीन पर गिरा और गिरते ही अपने पाँव अंदर की तरफ मोड़ लिए, मानो वो अभी भी अपनी माँ की कोख में हो।

इसके बाद माँ ने सर झुकाया और बच्चे को देखने लगी। सभी लोग बड़ी उत्सुकता से ये सब होते देख रहे थे की अचानक ही कुछ अप्रत्याशित सा घटा, माँ ने बच्चे को जोर से एक लात मारी, और बचा अपनी जगह से पलट गया।

कैंटर में बैठे बच्चे मास्टर जी से कहने लगे, "सर, आप उस जिराफ़ को रोकिये नहीं तो वो बच्चे को मार डालेगी।”

पर मास्टर जी ने उन्हें शांत रहने को कहा और पुनः उस तरफ देखने लगे।

बच्चा अभी भी जमीन पर पड़ा हुआ था कि तभी एक बार फिर माँ ने उसे जोर से लात मारी। इस बार बच्चा उठ खड़ा हुआ और डगमगा कर चलने लगा। धीरे-धीरे माँ और बच्चा झाड़ियों में ओझल हो गए।

उनके जाते ही बच्चों ने पुछा, "सर, वो जिराफ़ अपने ही बच्चे को लात क्यों मार रही थी। अगर बच्चे को कुछ हो जाता तो?”

मास्टर जी बोले, "बच्चों, जंगल में शेर-चीतों जैसे बहुत से खूंखार जानवर होते हैं। यहाँ किसी बच्चे का जीवन इसी बात पर निर्भर करता है की वो कितनी जल्दी अपने पैरों पर चलना सीख लेता है। अगर उसकी माँ उसे इसी तरह पड़े रहने देती और लात नहीं मारती तो शायद वो अभी भी वहीँ पड़ा रहता और कोई जंगली जानवर उसे अपना शिकार बना लेता।

Hindi Story Moral:

बच्चों, ठीक इसी तरह से आपके माता – पिता भी कई बार आपको डांटते – डपटते हैं। उस वक़्त तो ये सब बहुत बुरा लगता है, पर जब आप बाद में पीछे मुड़कर देखते हैं तो कहीं न कहीं ये एहसास होता है की मम्मी-पापा की डांट की वजह से ही आप लाइफ में कुछ बन पाये हैं। इसलिए कभी भी अपने बड़ों की सख्ती को दिल से ना लें। बल्कि उसके पीछे जो आपका भला करने की उनकी मंशा है उसके बारे में सोचें।”

दोस्तों अभी तक आप Top 7 Moral Stories in Hindi for Class 8 की 4 कहानियाँ पढ़ चुके हैं। और उम्मीद करते हैं की आगे की नैतिक कहानियाँ भी जरूर पढ़ेंगे। आईये पढ़ते हैं 5th Moral Stories in Hindi for class 8.


5. बुझी मोमबत्ती - Best Hindi Moral Stories for Class 8


एक पिता अपनी चार वर्षीय बेटी मिनी से बहुत प्रेम करता था। ऑफिस से लौटते वक़्त वह रोज़ उसके लिए तरह-तरह के खिलौने और खाने-पीने की चीजें लाता था। बेटी भी अपने पिता से बहुत लगाव रखती थी और हमेशा अपनी तोतली आवाज़ में पापा-पापा कह कर पुकारा करती थी।

दिन अच्छे बीत रहे थे की अचानक एक दिन मिनी को बहुत तेज बुखार हुआ। सभी घबरा गए। वे दौड़े भागे डॉक्टर के पास गए, पर वहां ले जाते-ले जाते मिनी की मृत्यु हो गयी।

परिवार पे तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा और पिता की हालत तो मृत व्यक्ति के समान हो गयी। मिनी के जाने के हफ़्तों बाद भी वे ना किसी से बोलते ना बात करते…बस रोते ही रहते। यहाँ तक की उन्होंने ऑफिस जाना भी छोड़ दिया और घर से निकलना भी बंद कर दिया।

आस-पड़ोस के लोगों और नाते-रिश्तेदारों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे किसी की ना सुनते, उनके मुख से बस एक ही शब्द निकलता … मिनी!

एक दिन ऐसे ही मिनी के बारे में सोचते-सोचते उनकी आँख लग गयी और उन्हें एक स्वप्न आया।

उन्होंने देखा कि स्वर्ग में सैकड़ों बच्चियां परी बन कर घूम रही हैं। सभी सफ़ेद पोशाकें पहने हुए हैं और हाथ में मोमबत्ती ले कर चल रही हैं। तभी उन्हें मिनी भी दिखाई दी।

उसे देखते ही पिता बोले, "मिनी, मेरी प्यारी बच्ची, सभी परियों की मोमबत्तियां जल रही हैं, पर तुम्हारी बुझी क्यों हैं, तुम इसे जला क्यों नहीं लेती?”

मिनी बोली, "पापा, मैं तो बार-बार मोमबत्ती जलाती हूँ, पर आप इतना रोते हो कि आपके आंसुओं से मेरी मोमबत्ती बुझ जाती है”

ये सुनते ही पिता की नींद टूट गयी। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया, वे समझ गए की उनके इस तरह दुखी रहने से उनकी बेटी भी खुश नहीं रह सकती, और वह पुनः सामान्य जीवन की तरफ बढ़ने लगे।

Moral:

मित्रों, किसी करीबी के जाने का ग़म शब्दों से बयान नहीं किया जा सकता। पर कहीं ना कहीं हमें अपने आप को मजबूत करना होता है और अपनी जिम्मेदारियों को निभाना होता है। और शायद ऐसा करना ही मरने वाले की आत्मा को शांति देता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जो हमसे प्रेम करते हैं वे हमे खुश ही देखना चाहते हैं, अपने जाने के बाद भी। 

दोस्तों अभी तक आप Top 7 Moral Stories for Class 8 in Hindi की 5 कहानियाँ पढ़ चुके हैं। और उम्मीद करते हैं की आगे की नैतिक कहानियाँ भी जरूर पढ़ेंगे। आईये पढ़ते हैं 6th Moral Stories in Hindi for class 8.


6. सेहत का रहस्य - Short Moral Stories in Hindi for Class 8


बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में शंकर नाम का एक वृद्ध व्यक्ति रहता था। उसकी उम्र अस्सी साल से भी ऊपर थी पर वो चालीस साल के व्यक्ति से भी स्वस्थ लगता था।

लोग बार बार उससे उसकी सेहत का रहस्य जानना चाहते पर वो कभी कुछ नहीं बोलता था । एक दिन राजा को भी उसके बारे में पता चला और वो भी उसकी सेहत का रहस्य जाने के लिए उत्सुक हो गए।

राजा ने अपने गुप्तचरों से शंकर पर नज़र रखने को कहा। गुप्तचर भेष बदल कर उस पर नज़र रखने लगे।

अगले दिन उन्होंने देखा की शंकर भोर में उठ कर कहीं जा रहा है, वे भी उसके पीछे लग गए। शंकर तेजी से चलता चला जा रहा था, मीलों चलने के बाद वो एक पहाड़ी पर चढ़ने लगा और अचानक ही गुप्तचरों की नज़रों से गायब हो गया।

गुप्तचर वहीँ रुक उसका इंतज़ार करने लगे।

कुछ देर बाद वो लौटा, उसने मुट्ठी में कुछ छोटे-छोटे फल पकड़ रखे थे और उन्हें खाता हुआ चला जा रहा था। गुप्तचरों ने अंदाज़ा लगाया कि हो न हो, शंकर इन्ही रहस्यमयी फलों को खाकर इतना स्वस्थ है।

अगले दिन दरबार में उन्होंने राजा को सारा किस्सा कह सुनाया।

राजा ने उस पहाड़ी पर जाकर उन फलों का पता लगाने का आदेश दिया, पर बहुत खोज-बीन करने के बाद भी कोई ऐसा असाधारण फल वहां नहीं दिखा।

अंततः थक-हार कर राजा शंकर को दरबार में हाज़िर करने का हुक्म दिया।

राजा – शंकर, इस उम्र में भी तुम्हारी इतनी अच्छी सेहत देख कर हम प्रसन्न हैं, बताओ, तुम्हारी सेहत का रहस्य क्या है?

शंकर कुछ देर सोचता रहा और फिर बोला, "महाराज, मैं रोज पहाड़ी पर जाकर एक रहस्यमयी फल खाता हूँ, वही मेरी सेहत का रहस्य है।"

ठीक है चलो हमें भी वहां ले चलो और दिखाओ वो कौन सा फल है।

सभी लोग पहाड़ी की और चल दिए, वहां पहुँच कर शंकर उन्हें एक बेर के पेड़ के पास ले गया और उसके फलों को दिखाते हुए बोला, "हुजूर, यही वो फल है जिसे मैं रोज खाता हूँ।"

राजा क्रोधित होते हुए बोले, "तुम हमें मूर्ख समझते हो, यह फल हर रोज हज़ारों लोग खाते हैं, पर सभी तुम्हारी तरह सेहतमंद क्यों नहीं हैं?”

शंकर विनम्रता से बोला, "महाराज, हर रोज़ हजारों लोग जो फल खाते हैं वो बेर का फल होता है, पर मैं जो फल खाता हूँ वो सिर्फ बेर का फल नहीं होता …वो मेरी मेहनत का फल होता है। इसे खाने के लिए मैं रोज सुबह १० मील पैदल चलता हूँ जिससे मेरे शरीर की अच्छी वर्जिश हो जाती है और सुबह की स्वच्छ हवा मेरे लिए जड़ी-बूटियों का काम करती है। बस यही मेरी सेहत का रहस्य है।"

राजा शंकर की बात समझ चुके थे, उन्होंने शंकर को स्वर्ण मुद्राएं देते हुए सम्मानित किया। और अपनी प्रजा को भी शारीरिक श्रम करने की नसीहत दी।

Moral of this Hindi Story:

मित्रों, आज टेक्नोलॉजी ने हमारी ज़िन्दगी बिलकुल आसान बना दी है, पहले हमें छोटे-बड़े सभी कामों के लिए घर से निकलना ही पड़ता था, पर आज हम internet के माध्यम से घर बैठे-बैठे ही सारे काम कर लेते हैं। ऐसे में जो थोड़ा बहुत physical activity के मौके होते थे वो भी खत्म होते जा रहे हैं, और इसका असर हमारी सेहत पर भी साफ़ देखा जा सकता है। WHO के मुताबिक, आज दुनिया में २० साल से ऊपर के ३५% लोग overweight हैं और ११ % obese हैं।ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि हम अपनी सेहत का ध्यान रखें और रोज़-मर्रा के जीवन में शारीरक श्रम को महत्त्व दें।

दोस्तों अभी तक आप Top 7 Hindi Moral Stories for class 8 की 6 कहानियाँ पढ़ चुके हैं। और उम्मीद करते हैं की आगे की नैतिक कहानियाँ भी जरूर पढ़ेंगे। आईये पढ़ते हैं 7th Moral Stories in Hindi for class 8.


7. डाँकू रत्नाकर और देवऋषि नारद - Moral Stories for Class 8 in Hindi


बहुत समय पहले की बात है किसी राज्य में एक बड़े ही खूंखार डाँकू का भय व्याप्त था। उस डाँकू का नाम रत्नाकर था। वह अपने साथियों के साथ जंगल से गुजर रहे राहगीरों को लूटता और विरोध करने पर उनकी हत्या भी कर देता।

एक बार देवऋषि नारद भी उन्ही जंगलों से भगवान का जप करते हुए जा रहे थे। जब वे घने बीहड़ों में पहुंचे तभी उन्हें कुछ लोग विपरीत दिशा में भागते हुए दिखे।

देवऋषि ने उनसे ऐसा करने का कारण पूछा तो सभी ने मार्ग में रत्नाकर के होने की बात बतायी। पर बावजूद इसके देवऋषि आगे बढ़ने लगे।

“क्या आपको भय नहीं लगता?”, भाग रहे लोगों ने उन्हें ऐसा करते देख पुछा।

“नहीं, मैं मानता ही नहीं की मेरे आलावा यहाँ कोई और है, और भय तो हमेशा किसी और के होने से लगता है, स्वयं से नहीं।", ऋषि ने ऐसा कहते हुए अपने कदम आगे बढ़ा दिए।

कुछ ही दूर जाने पर डाँकू रत्नाकर अपने साथियों के साथ उनके समक्ष आ पहुंचा।

रत्नाकर – नारद, मैं रत्नाकर हूँ, डाँकू रत्नाकर।

नारद मुस्कुराते हुए बोले – मैं नारद हूँ देवऋषि नारद, तुम्हारा अतिथि और मैं निर्भय हूँ। क्या तुम निर्भय हो?

रत्नाकर – क्या मतलब है तुम्हारा?

नारद – ना मुझे प्राणो का भय है, ना असफलता का, ना कल का ना कलंक का, और कोई भय है जो तुम जानते हो? अब तुम बताओ क्या तुम निर्भय हो?

रत्नाकर – हाँ, मैं निर्भय हूँ, ना मुझे प्राणो का भय है, ना असफलता का, ना कल का ना कलंक का।

नारद – तो तुम यहाँ इन घने जंगलों में छिप कर क्यों रहते हो? क्या राजा से डरते हो?

रत्नाकर – नहीं!

नारद – क्या प्रजा से डरते हो?

रत्नाकर- नहीं!

नारद- क्या पाप से डरते हो?

रत्नाकर – नहीं!

नारद – तो यहाँ छिप कर क्यों रहते हो?

यह सुनकर रत्नाकर घबरा गया और एकटक देवऋषि को घूरने लगा।

नारद – उत्तर मैं देता हूँ। तुम पाप करते हो और पाप से डरते हो।

रत्नाकर हँसते हुए बोला – नारद तुम अपनी इन बातों से मुझे भ्रमित नहीं कर सकते। ना मैं पाप से डरता हूँ, ना पुण्य से, ना देवताओं से ना दानवों से, ना राजा से ना राज्य से, ना दंड से ना विधान से। मैंने राज्य के साथ द्रोह किया है, मैंने समाज के साथ द्रोह किया है, इसलिए मैं यहाँ इन बीहड़ों में रहता हूँ। ये प्रतिशोध है मेरा।

नारद – क्या था वो पाप जिससे तुम डरते हो?

रत्नाकर- मुझे इतना मत उकसाओ की मैं तुम्हारी हत्या कर दूँ नारद । इतना तो मैं जान ही चुका हूँ कि पाप और पुण्य की परिभाषा हमेशा ताकतवर तय करते हैं और उसे कमजोरों पर थोपते हैं। मैंने साम्राज्यों का विस्तार देखा है, हत्या से, बल से, छल से, मैंने वाणिज्य का विस्तार देखा है, कपट से, अनीति से, अधर्म से, वो पाप नहीं था? 

मैं सैनिक था, दुष्ट और निर्दयी सौदागरों की भी रक्षा की… वो पाप नहीं था? युद्ध में हारे हुए लोगों की स्त्रीयों के साथ पशुता का व्यवहार करने वाले सैनिकों की हत्या क्या की मैंने, मैं पापी हो गया? राजा, सेना और सेनापति का अपराधी हो गया मैं। क्या वो पाप था?

नारद – दूसरों का पाप अपने पाप को सही नहीं ठहरा सकता रत्नाकर।

रत्नाकर चीखते हुए – मैं पापी नहीं हूँ।

नारद – कौन निर्णय करेगा? वो जो इस यात्रा में तुम्हारे साथ हैं या नहीं हैं? क्या तुम्हारी पत्नी, तुम्हारा पुत्र, इस पाप में तुम्हारे साथ हैं?

रत्नाकर – हाँ, वो क्यों साथ नहीं होंगे, मैं जो ये सब करता हूँ, उनके सुख के लिए ही तो करता हूँ। 

तो जो तुम्हारे साथ हैं उन्ही को निर्णायक बनाते हैं। जाओ, अपनी पत्नी से, अपने पुत्र से, अपने पिता से, अपने निकट सम्बन्धियों से पूछ कर आओ, जो तुम कर रहे हो, क्या वो पाप नहीं है, और क्या वे सब इस पाप में तुम्हारे साथ हैं? इस पाप के भागीदार हैं?

रत्नाकर – ठीक है मैं अभी जाकर लौटता हूँ।

अपने साथियों को नारद को बाँध कर रखने का निर्देश देकर रत्नाकर सीधा अपनी पत्नी के पास जाता है और उससे पूछता है – "ये मैं जो कर रहा हूँ, क्या वो पाप है? क्या तुम इस पाप में मेरी भागीदार हो?"

पत्नी कहती है, "नहीं स्वामी, मैंने आपके सुख में, दुःख में साथ देने की कसम खाई है, आपके पाप में भागीदार बनने की नहीं।"

यह सुन रत्नाकर स्तब्ध रह जाता है। फिर वह अपने अंधे पिता के समक्ष यही प्रश्न दोहराता है, "पिताजी, ये जो मैं कर रहा हूँ, क्या वो पाप है? क्या आप इस पाप में मेरी भागीदार हैं?"

पिताजी बोलते हैं, "नहीं पुत्र, ये तो तेरी कमाई है, इसे मैं कैसे बाँट सकता हूँ।"

यह सुनते ही मानो रत्नाकर पर बिजली टूट पड़ती है। वह बेहद दुखी हो जाता है और धीरे – धीरे चलते हुए वापस देवऋषि नारद के पास पहुँच जाता है।

नारद- तुम्हारे साथी मुझे अकेला छोड़ जा चुके हैं रत्नाकर।

रत्नाकर, देवऋषि के चरणो में गिरते हुए – क्षमा देवऋषि क्षमा, अब तो मैं भी अकेला ही हूँ।

नारद – नहीं रत्नाकर, तुम्ही अपने मित्र, और तुम्ही अपने शत्रु हो, तुम्हारे पुराने संसार की रचना भी तुम्ही ने की थी.. तुम्हारे नए संसार की रचना भी तुम्ही करोगे। इसलिए उठो और अपने पुरुषार्थ से अपना भविष्य लिखो …. राम-राम, तुम्हारा पथ सुबह हो।

Moral of this Story:

मित्रों, इस घटना के पश्चात डाकू रत्नाकर का जीवन पूरी तरह बदल गया, उसने पाप के मार्ग को त्याग पुण्ये के मार्ग को अपनाया और आगे चलकर यही डाँकू राम-कथा का रचयिता मह्रिषी वाल्मीकि बना।

उपनिषदों से ली गयी यह कथा बताती है कि मनुष्य असीम संभावनाओं का स्वामी है, जहां एक तरफ वह अपने पुरुषार्थ से राजा बन सकता है तो वहीँ अपने आलस्य से रंक भी। वह अपने अविवेक से अपना नाश कर सकता है तो अपने विवेक से अपना निर्वाण भी। यानि, हम सब अपने आप में महाशक्तिशाली हैं, पर हममें से ज्यादातर लोग पूरे जीवन काल में अपनी असीम शक्तियों का एक छोटा सा हिस्सा भी प्रयोग नहीं कर पाते। क्यों ना हम भी डाँकू रत्नाकर की तरह सामान्यता को त्याग कर उत्कृष्टता की ओर बढ़ चलें !


दोस्तों यह थी top 7 Moral Stories in Hindi for class 8. ये सभी कहानियाँ नैतिक है। और इन कहानियों से बच्चों को बहुत मदद मिलेगी।

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