एपीजे अब्दुल कलाम के 10 प्रेरक प्रसंग जो उनकी सादगी और परोपकार को दर्शाती हैं



सपना वो नहीं जो आप नींद में देखें,सपने वो हैं जो नींद ही नही आने दे। 

- भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

ऐसे बुलंद सोच रखने वाले थे महान वैज्ञानिक और देश के पूर्व राष्ट्रपति Dr APJ Abdul Kalam.


Dr. APJ Abdul Kalam ke 10 prerak parsang

महान वैज्ञानिक होने और देश के राष्ट्रपति बनने के बावजूद एपीजे अब्दुल कलाम में हमेशा एक आम आदमी की जिंदगी जीने की चाहत थी। और यही उन्होंने कोशिश की। आज हम आपको उनके जिंदगी के ऐसे 10 किस्से बताने वाले हैं जो उनके दरियादिली की छाप छोड़ते हैं।

एपीजे अब्दुल कलाम के 10 प्रेरक प्रसंग जो उनकी सादगी और परोपकार को दर्शाती हैं 

(10 motivational stories of kalam which shows his simplicity and benevolence) 


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#1. डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साल 2002 में राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार केरल गए थे। उस वक्त केरल राजभवन मे राष्ट्रपति के मेहमान के तौर पर दो लोगों को नेवता भेजा गया। जानते हैं कौन थे यह दोनों मेहमान? पहला मोची और दूसरा एक छोटे ढाबे का मालिक।

दरअसल डॉ कलाम काफी दिनों तक केरल के राजधानी तिरुअनंतपुरम में रहे थे। तभी से सड़क पर बैठने वाले मोची से उनकी जान पहचान हो गई थी। उस दौरान अक्सर वो एक ढाबे मैं खाना खाने जाया करते थे। राष्ट्रपति बनने के बाद भी डॉक्टर कलाम इन्हें नहीं भूले और जब मेहमानों को बुलाने की बारी आई तो कलाम साहब ने उन दोनों को खासतौर से चुना।

#2. डॉ कलाम ने कभी अपने या अपने परिवार के लिए कुछ बचा कर नहीं रखा। राष्ट्रपति पद पर रहते ही उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी और मिलने वाली तनख्वाह एक ट्रस्ट के नाम कर दी।
Providing urban amenities in rural areas (PURA) नाम का यह ट्रस्ट देश के ग्रामीण इलाकों में बेहतरी के लिए काम में जुटा हुआ है।

अमूल के संस्थापक और देश में श्वेत क्रांति लाने वाले Dr Verghese Kurien ने इस बारे में डॉक्टर कलाम से पूछा तो उनका जवाब था कि चुकी मैं देश का राष्ट्रपति बन गया हूं, इसलिए जब तक जिंदा रहूंगा, सरकार मेरा ध्यान आगे भी रखेगी। तो फिर मुझे तनख्वाह और जमा पूंजी बचाने की क्या जरूरत है। अच्छा है की यह भलाई के काम आ जाए।

#3. बात तब की है जब डॉक्टर कलाम DRDO के डायरेक्टर थे। अग्नि मिसाइल पर काम चल रहा था। काम का दबाव काफी था। उसी दौरान एक दिन एक जूनियर वैज्ञानिक ने डॉक्टर कलाम से आकर कहा कि मैंने अपने बच्चों से वादा किया है के उन्हें प्रदर्शनी घुमाने ले जाऊंगा। इसलिए आज थोड़ा पहले मुझे छुट्टी दे दीजिए।
कलाम ने खुशी-खुशी हामी भर दी। उस दिन जूनियर वैज्ञानिक काम में ऐसा मसगुल हुआ की उसे प्रदर्शनी जाने की बात याद ही नहीं रही। जब वह रात को घर पहुंचा तो यह जानकर हैरान रह गया कि डॉक्टर कलाम वक्त पर उसके घर पहुंच गए और बच्चों को प्रदर्शनी घुमाने ले गए हैं। ताकि काम में फस कर उसका वादा ना टूटे।


#4. देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बाद भी डॉक्टर कलाम को गुरुर कभी छू नहीं पाया था।

बात साल 2013 की है। आईआईटी वाराणसी में दीक्षांत समारोह के मौके पर उन्हें बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम में मंच पर पांच कुर्सियां लगाई गई थी, जिसमें बीच वाली कुर्सी पर डॉ कलाम को बैठना था। लेकिन वहां पर मौजूद हर एक शख्स हैरान रह गया, जब कलाम ने बीच वाली कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया। वजह थी - बीच वाली कुर्सी बाकी चारों कुर्सी से बड़ी थी। कलाम बैठने के लिए तभी राजी हुए जब आयोजकों ने बड़ी कुर्सी हटा कर बाकी के बराबर की कुर्सी मंगवाई।

#5. डॉ कलाम कितने संवेदनशील थे इसका वाक्या DRDO मे उनके साथ काम कर चुके बताते हैं। 1982 में DRDO यानी भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान मे डायरेक्टर बनकर आए थे।
DRDO की सुरक्षा और पुख्ता करने की बात उठी। उसकी चारदीवारी पर कांच के टुकड़े लगाने का प्रस्ताव भी आया। लेकिन कलाम ने इसकी सहमति नहीं दी। उनका कहना था कि चारदीवारी पर कांच के टुकड़े लगे तो उस पर पक्षी ही नहीं बैठ पाएंगे और उनके घायल होने की आशंका भी बढ़ जाएगी। उनकी सोच का नतीजा था कि डीआरडीओ की दीवारों पर कांच के टुकड़े नहीं लगे।


#6. एक बार डॉक्टर कलाम को एक कॉलेज के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होना था। उस वक्त वह राष्ट्रपति नहीं बने हुए थे। लेकिन डीआरडीओ में एक बड़े पद पर थे और सरकार के सलाहकार भी थे। कार्यक्रम से 1 दिन पहले रात में ही कलाम को कार्यक्रम की तैयारी देखने की इच्छा हुई।।वह बिना सुरक्षा लिए ही जीप में सवार होकर कार्यक्रम की जगह पहुंच गए और वहां मौजूद छात्रों से बात की। VIP तामझाम से उलट डॉक्टर कलाम के इस अंदाज ने छात्रों का दिल जीत लिया।


#7. साल 2002 की बात है। डॉक्टर कलाम का नाम अगले राष्ट्रपति के रूप में तय हो चुका था। उसी दौरान एक स्कूल ने उनसे छात्रों को संबोधित करने की गुजारिश की। बिना सुरक्षा तामझाम के डॉक्टर कलाम उस कार्यक्रम में शामिल हुए। 400 छात्रों के सामने वह भाषण देने के लिए खड़े हुए ही थे की अचानक बिजली चली गई। आयोजक जब तक कुछ सोचते, डॉक्टर कलाम छात्रों के बीच पहुंचे गए और बिना माइक के अपनी बात रखी और छात्रों के सवालों का जवाब दिया।

#8. डॉक्टर कलाम दूसरे के मेहनत और खूबियों को तहे दिल से सराहते थे और ऐसे लोगों को अपने हाथों से थैंक यू कार्ड बनाकर भेजा करते थे। डॉक्टर कलाम जब राष्ट्रपति थे उस दौरान नमन नारायण नाम के एक कलाकार ने उनका स्केच बनाया और उन्हें भेजा। नमन के पास जब राष्ट्रपति डॉ कलाम का हाथ से बना थैंक यू कार्ड और संदेश पहुंचा तो वह भौचक्का थे। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि महामहिम इस तरह दोस्ताना अंदाज में उन्हें शाबाशी देंगे।

#9. डॉक्टर कलाम में एक बड़ी खूबी यह थी की अपने किसी प्रशंसक को नाराज नहीं करते थे। बात 2014 की है। डॉक्टर कलाम आई आई एम अहमदाबाद के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनकर गए। कार्यक्रम से पहले छात्रों ने अब्दुल कलाम के साथ लंच किया और छात्रों की गुजारिश पर उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने लगे। कार्यक्रम में देरी होते देख आयोजकों ने छात्रों को तस्वीरें लेने से मना किया। इस पर कलाम ने छात्रों से कहा मैं तब तक यहां से नहीं जाऊंगा जब तक आप सब के साथ मेरी तस्वीरें न हो जाएं।

#10. डॉक्टर कलाम मिलने आने वाले बच्चों को अक्सर अपने बचपन का एक किस्सा बताया करते थे। किस्सा तब का है, जब डॉक्टर कलाम करीब आठ 9 साल के थे। एक शाम उनके पिता काम से लौटने के बाद खाना खा रहे थे। थाली में एक रोटी जली हुई थी। रात में बालक कलाम ने अपने मां को पिता से माफी मांगते सुना। तब पिता ने बड़े प्यार से जवाब दिया - मुझे जली हुई रोटियां भी पसंद है। कलाम ने इस बारे में पिता से पूछा तो उन्होंने कहा -  जली रोटियां किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती लेकिन कड़वे शब्द जरूर नुकसान पहुंचाते  हैं। इसलिए रिश्तो में 1 दूसरों की गलतियों को प्यार से लो और जो तुम्हें नापसंद करते हैं उनके लिए संवेदना रखो।


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